> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मेरी झलक ...

गुरुवार, 24 मार्च 2011

मेरी झलक ...

क्या मैं शून्य हूँ?
नहीं -
उससे भी निराला |
शून्य तो मात्र प्रतिबिम्ब है
जैसे आकाश , हवाएँ,
लहराता समुन्द्र,
दूर - दूर तक फैली हरी भरी धरती,
प्रकाश और अँधेरा ,
स्वर -
वीणा, पखावज जैसे  साजों के,
नाद -
जैसे बादलों और बिजली के
सब के सब मेरे स्वरुप है |

पर मैं कौन हूँ
नहीं जानता था
तब-तक जब-तक
मिले नहीं सतगुरु |

देख नहीं सकती आँखें,
सुन नहीं सकते कान,
शब्द जहाँ नहीं जाते,
उसका जिह्वा कैसे करे बखान|

बताया सतगुरु ने -
हर चीज-वस्तु में
देता हुआ सबको सत्ता,
मैं हूँ सबमें मौजूद,
अचिन्त्य, अलग,
सबसे न्यारा,
सबसे प्यारा -
आत्म-तत्व , परमात्म-तत्व |

3 टिप्‍पणियां:

  1. निसंदेह वो परम तत्व ही कण-कण में विद्यमान है ।
    सुन्दर रचना ।

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  2. उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की सत्ता तो सर्वमान्य है..... बहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं आपने..... अर्थपूर्ण कविता

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  3. धन्यवाद, डॉ मोनिका व डॉ दिव्या |

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