> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : ते नर दुर्लभ

रविवार, 10 जून 2012

ते नर दुर्लभ


सबसन प्रीति, दया, मैत्री,
माता सम देखहिं पर-स्त्री |
ते नर दुर्लभ यह जग माहिं,
राम नाम जे जपहिं सदाहिं |

काहू के निंदा करहीं न सुनहिं,
परहित धर्मं निरत नित रहहिं |
वेद-पुराण सम्मत मत कहहिं,
काम, क्रोध, मद, लोभ ते डरहिं | 

ब्रह्म विचार मगन जे रहहिं,
आत्मवत सब देखहिं कहहिं |
'हेमंत' तिनकर सदा बलिहारी
आत्मदेव के जे होहिं पुजारी |

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