> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : नूरानी निगाहों का जादू

रविवार, 1 जुलाई 2012

नूरानी निगाहों का जादू





















झूठे गन्धर्वों की सभा में,
मोहिनी का छाया जादू था|
राग-रागिनियों में सब उलझे,
रंग-रलियों का नशा चढ़ा था|

प्यालों से पीने वाले,
      मदहोश हुए से झूम रहे|
डींगों से अपनी बनते बड़े,
      आपस में लड़ते-झगड़ते रहे |

तब एक फकीर बाबा ने,
      नज़रों से कुछ ऐसा पिलाया|
बेहोशी से सब उठ बैठे,
      भ्रम का छूट गया साया|

नूरानी निगाहों का जादू,
ईश्वर से मिलाने वाला था|
नश्वर को शाश्वत मानने का,
भ्रम दूर भागने वाला था|

आये कहाँ से गए किधर,
सूरत जिनकी भोली-भाली है|
गन्धर्व बने फिर से मानव,
बाबा की बात निराली है|

© हेमंत कुमार दुबे
     
  


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