> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : प्रेम से कदम मिलाओ साथी

बुधवार, 26 जून 2013

प्रेम से कदम मिलाओ साथी


 

 

एक फूल सी मिली है जिंदगी

खुशबू बिखेरने में मजा है

तुम मेरी रजा में रजामंद रहो

मेरी बस इतनी सी रजा है

 

न है कोई शिकवा या गिला

बड़ी मिन्नत से ये लम्हा मिला है

मैं तुम्हारी सुनूँ तुम मेरी सुनो

खुदा के दर को कारवां चला है

 

डोली में बैठा है वो मुसाफ़िर

जिसकी मर्जी से ये जहां चला है

भार तेरे मेरे कन्धों पर थोड़ा

बाकि औरों के कन्धों पर रखा है

 

प्रेम से कदम मिलाओ साथी

चलो मुसाफ़िर ले चलता जहाँ है

जो उसका अलिशाने घर है

अपना ठौर ठिकाना भी वहीं है|

 

© हेमंत कुमार दुबे

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