> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : तुम्हारा संकल्प

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

तुम्हारा संकल्प



समुंदर में उठती गिरती
लहरों को पता नहीं
कितनी खूबसूरती से लिखा
तुमने रेत पर मेरा नाम

उन्हें तो आदत है
किनारों से टकराने की
मिटाने की
बहा ले जाने की

पर तुम्हारे बारे में 
वे नहीं जानती
मैं जानता हूँ
क्योंकि
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारा संकल्प
बार बार लिखना
उसी सुंदरता से
परवाह किये बिना
लहरों की

तुम लिखती रहोगी
तबतक जबतक
मैं जिद न करूँ
प्यार से
ठहरने की

क्योंकि मैं जानता हूँ
तुम्हें प्यार है
सिर्फ मुझसे
हद से ज्यादा|

(c)
हेमंत कुमार दूबे

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