> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : ब्रह्म की बात

रविवार, 20 दिसंबर 2015

ब्रह्म की बात

ब्रह्मज्ञानी का शिष्य हूँ,
ब्रह्म में रमण करता हूँ,
ब्राह्मण कहलाता हूँ
मैं ब्रह्म का अनन्य अंश हूँ
अव्यक्त नाम मेरा
न कोई वैरी मेरा
न कोई मित्र मेरा
न ये चोला मेरा
चहुँओर व्याप्त ब्रह्म है
उसके नाटक का अंश है
भ्रम का पर्दा हटाना है
यही ब्रह्म का आदेश है |

- हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'

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